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दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा

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वैशाख की सुखार झुलसती धरती जेठ की तपती गर्मी तरसती कंठ तड़पती पेड़ पौधे अकौलाते पशु पक्षी बौखलाते कीट पतंगे बिनबिनाती छटपटाती जिंदगी दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा रहम कर समुंद्र से उठा गगन चुमा पाया सहारा हवा का मिला दिशा कड़ाहती जीवन मचलती पवन चला इठलाती घूमरती शैर करती बादल उमड़ा दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा साथ हो लिया आंधी तूफान गरजने लगा आसमान कड़कने लगा बिजली कौंधने लगा जीवन बरसने लगा तृप्त होने लगा धरती बुझा प्यास झूमने लगा पेड़ पौधे पशु पक्षी और कीट पतंगे दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा भड़ने में लगा पोखर तालाब चौड़ चाचड़ गूंजने लगा मेंढ़कों की टर टराहट सर सराहट सुगबूगाने लगा नदी नाले की गर गराहट घबराहट बढ़ने लगा देख प्रलय का संकेत दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा उफनाने लगी नदी सीमा पार को आतुर भड़ गई पेटी जलधारा छू गई किनारा आ गई मुसीबत की बाढ़ बढ़ गई चौकसी बांध किनारे लगा कृत्रिम प्रकाश हो गई आवाजाही दहशत भड़ी रातें बितती देख : प्रलय की धारा प्रकृति का प्रकोप स

मेरी कलम कहती है My pen says

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मेरी कलम कहती है जब तू ने प्रथम स्पर्श किया था, तेरी उम्र रही होगी 4 या 5 साल। नहीं संभाल पाया मेरी 20 ग्राम वजन छूट गई तेरी उंगली सह न सका मेरी भार मुश्किल से टेढ़ी-मेढ़ी खींच पाया लाइन और घशा करता था बर्बाद किया करता था पन्ना धीरे धीरे मैं तेरी हाथों में सिमटने में लगा खुशी हुई मुझे बहुत, तुझे क्या अनुभव हुआ। तूने मुझे बहुत दर्द दिया मैं मंद मंद मुस्काता तेरी नटखट लीला को झेलता हुआ गौरवान्वित महसूस करता था। तुने मुझे चलाना सीखने लगा मैं चलने लगा। टेढ़ी-मेढ़ी से शुरुआत हुआ मेरे साथ साथ तेरे माता पिता और शिक्षक लड़खड़ाते हाथों को सहारा दे हौसला देने लगे। तूने सुंदर तो नहीं, लिखने लगा मेरी चाल को समझने लगा। मेरी रफ्तार में खुद को ढालने लगा। मुझे कागज पर नचाने लगा खूब रिफिल खत्म करने लगा तूने कमीज पर मुझे बहाकर अंगूठा पर रगड़ कर निशान भी लगाया करता था। वो अंधेरी रात लालटेन दीया के झिलमिलाती रोशनी में भविष्य लिखने लगा। अपनी तकदीर को सीचते हुए कागज पर उकेड़ने लगा। लिखते लिखते तेरी उम्र प्रौढ़ावस्था में आ गई मेरी सहयोग से स्नातकोत्तर तक की परीक्षा लिख सफल हुआ। मेरे ही बलबूते बिह

कराहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो Groan pain asks how do you cum

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कड़ाहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो तकदीर के भरोसे कर्म को छोड़ कैसे देते हो भाग्य का फल मान मेहनत को छोड़ कैसे देते हो कर्मठता से पाया मंजिल ईश्वर का देन कैसे समझ लेते हो घटित घटना का प्रभाव पूर्वजन्म की कर्म से कैसे जोड़ लेते हो कराहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो सुबह से शाम तक की काम पूछती है कर कैसे लेते हो प्रत्येक परेशानी पूछती है झेल कैसे लेते हो लाख मुसीबतें पूछती है मुस्कुरा कैसे लेते हो थका हारा पैर पूछती है चल कैसे लेते हो कराहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो खाली पेट नंगा बदन पूछती है जी कैसे लेते हो बढ़ती महंगाई पूछती है खरीद कैसे लेते हो भ्रष्टाचार अपराध बलात्कार पूछती है मौन कैसे रह लेते हो टूटती सड़के डुबती शहरे पूछती है गाड़ी चला कैसे लेते हो कराहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो बढ़ती प्रदूषण पूछती है सांस कैसे लेते हो कटती पेड़ पौधे पूछती है तपती गर्मी बर्दाश्त कैसे कर लेते हो घटती जमीनी जलस्तर पूछती है पानी पी कैसे लेते हो विलुप्त होती पशु-पक्षी पूछती है कलरव और दहाड़ सुन कैसे लेते हो कराहती दर्द पूछती है सह कैसे लेते हो घटती खेती योग्य जमीन पूछती है

कर्मठता एक संघर्ष: जीवन Diligence a struggle:life

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कर्मठता कहती है वक्त है दिनचर्या बदलती है सूर्योदय के साथ ही तकदीर उठती है। कर्मठता कर्म की पहचान ठोकरें खाती मंजिल सहज पहुंचती है संघर्ष के नाम बदलती है तकदीर हुनर कहते हैं जीवन ही संघर्ष है। अस्मिता बचाने को दुनिया में बनाए रखने के लिए विलुप्त की श्रेणी में शामिल नहीं होने के लिए कभी खुद से कभी अपने आप से संघर्ष होती है। जब तक संघर्ष है तभी तक जीवन है। मिटते ही संघर्ष मिट जाती है जीवन पहचान मिला मेहनत नमकीन करती नजरों की परख आगे बढ़ती कहानी लिखती बना था मीठा था कश्ती का खेल दुनिया कहती है कर्म के बलबूते दुनिया पर राज की जा सकती है। कर्म ऐसी हो जिसके बिना मानव क्या पशु पक्षी भी बेचैनी महसूस करें। नाप दो धरती को कर्म से चूम लो गगन को पक्की इरादा से सागर की लहरों को उमड़ने दो संघर्ष से इतिहास बदल दो अपने कर्मठता से हमारी पहचान हमारे धरोहर रूपी पूर्वज नहीं होनी चाहिए बल्कि हमारे कर्मों से हमारे पूर्वज का पताका जमीन से लेकर आसमान तक लहड़ाते रहना चाहिए। कर्मठता को मोहताज ना होने दो अकर्मठता को हावी ना होने दो नकारात्मकता को प्रभावी ना होने दो सकारात्मकता को घमंड ना

ढूंढती आंखें पूछती है अंधेरी काली रातों से Seeking eyes asks dark nights

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ढूंढती आंखें पूछती है अंधेरी काली रातों से छटपटाहट कहती है दर्द इधर भी मुश्किल से दिखता है नजर उठती नहीं है परछाई छुपता कभी लंबा होता है ढलते सूरज से पूछो दिन के उजाले में बहुत कुछ घटती है क्यों चुपचाप देखते हो अश्रु सूख गई गला अवरुद्ध पड़ गई वापसी का चेहरा देखता है सड़के नदी नाले चौक चौराहे उठते कदम पूछते सवाल निगलते वचन दार क्यों रूठ गई प्रकृति पुकारती दूर न जाओ टिको अपने मिट्टी का कर्ज उतारो चकाचौंध भाग रहा है गांव अवाद होता है या बर्बाद होता है मुसीबत में याद आती लौटता थका हारा बेसहारा मिट्टी ने जन्म दिया फर्ज निभा गले लगा आश्रय देती है वक्त का हिसाब है तपती सड़के चुभती कांटे पत्थर कंकर पड़ती छाले भूख प्यास नंगे बदन जानती है कुछ पाने को भागा खाली हाथ साथ में संक्रमण ले वापस आ रहा है ऐसी क्या जिंदगी है पास न हफ्ते दो हफ्ते का राशन जानना चाहता हूं क्या प्रतिदिन बिकती है जिंदगी कुछ तो संचित करो आने वाले कल के लिए क्या जीते हो केवल दिन के उजालों में रात के अंधेरों के लिए कुछ तो उपाय करके रखो करवट लेती सुख-दुख जिंदगी है महामारी का जाल फंस गया गरीब मजदूर का रोजगार

शिव को समर्पित आया सावन झूम के Sawan Jhoom came dedicated to Shiva

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सावन की रिमझिम फुहार होने लगा मन उछलने लगा तन झूमने लगा शिव की भक्ति में डूबने लगा भांग धतूरा बेल ढूंढने लगा प्रकृति अपना रूप दिखाने लगा सावन के आगमन का तैयारी करने लगा अबकी बरस महामारी का कहर बंद है कावड़ यात्रा बंद है देवघर बंद है मंदिर के द्वार बंद है हरिहर बंद है पुजारी के मंत्र बंद हैं कष्टकर बंद है मारवाड़ी वाशा बंद है व्यापार बंद है गंगा स्नान बंद है दृश्य मनोहर सावन है शिव को समर्पित सावन है शिव रूप साक्षात सावन है शिव अमृत सावन है शिव नाम आहूत सावन है शिव दर्शित सावन है शिव नमन शत शत निराश ना हो उदास ना हो        शारीरिक यात्रा ना हो सामूहिक यात्रा ना हो भीड़ भाड़ ना हो कोरोना ना हो संकट ना हो संक्रमण ना हो हताश ना हो परेशान ना हो असुरक्षित ना हो महामारी फैलाव ना हो बचेगा जिंदगी लगेगा वर्षों जमघट करेगा बेड़ा पार शिव धाम होगा यात्रा रहेगा सुरक्षित होगा पूजा पाठ मानेगा शिव होगा कल्याण कहेगा शिव होगा उद्धार बनेगा विश्वास बढ़ेगा आत्मसम्मान क्षमावान है शिव दयावान है शिव रक्षकवान हैं शिव गुणवान है शिव नंदीवान है शिव पालनवान हैं शिव रखो विश्वास छटेंगी संकट के

जिला कार्यक्रम पदाधिकारी माध्यमिक शिक्षा समस्तीपुर को समर्पित Dedicated to District Program Officer Secondary Education Samastipur

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सुलझे व्यक्तित्व श्रीमान सुनील कुमार तिवारी उलझ गई जिंदगी कोरोना के जाल में गरीब मजदूर असहाय प्रवासी को करते हुए सेवा निस्वार्थ स्पष्टवादी स्वभाव कार्यकलाप सेवा करते करते अनंत गति को पा लिए छोड़ चले रोते बिलखते परिवार शिक्षक पदाधिकारी और कर्मी को सब के सब सन्न रह गए हो गए भौचके जानता हूं उनके मृदुभाषा को अपने विद्यालय में बुलाया था विशिष्ट अतिथि बना, था अवसर उद्घाटन स्मार्ट क्लास हंसमुख चेहरा आज भी नहीं हटता नजर से बच्चों, शिक्षकों से था गहरी नाता खूब किया करते थे मैसेज याद है बथनाहा चेहराकला के निवासी जन्म स्थान के सापेक्ष चेहरा खिला खिला महुआ अनुमंडल के समान मिलनसार आम्रपाली की नगरी वैशाली सुलभ सलाहकार ना पद का घमंड ना दिखावा बस एक समान असाधारण व्यक्तित्व सरल व्यवहार सादा जिंदगी उत्तम विचार ऐसे थे हमारे शिक्षा पदाधिकारी मजदूर दिवस पर मजदूर की सेवा में हुए प्रतिनियुक्त माह के आखिरी में बिगड़ने लगी तबीयत आखिर हार गए जीत गया महामारी यादों स्मृति में छाए थे रहेंगे अमर जंग लड़े हैं खूब लड़े हैं आखरी दम तक लड़े हैं हिम्मत कभी नहीं हारे हौसला था बुलंद इरादा था फौलादी

हिचकोला खाती जिंदगी Hitchhiker eats life

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मैंने देखा है बस स्टैंड की जिंदगी जहां जिंदगी को सामान समझ ऊपर नीचे कोच दिया जाता है। क्या बूढ़े क्या बच्चे क्या नौजवान सब एक दूसरे से चिपके हैं मानो सब के सब चुंबक हो गए। सिर्फ गंतव्य तक जाना है इसलिए कष्ट झेल जाना है। यही हाल रेलवे स्टेशन की है विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होने को जा रहे युवाओं की भीड़ देखी है मैंने क्या स्लीपर क्या जनरल बोगी सब के सब एक समान है सब में भरे हैं अपने माथे से बेरोजगारी का कलंक मिटाने खड़े बैठ जा रहे हैं युवा। एक पद के लिए हजारों की भीड़ खड़ी है असमंजस में है जिंदगी क्या पाएगा क्या खोएगा क्या मिलेगा रोजगार बस यही चिंता खाए जा रही है। मैं बिहार के परिपेक्ष में लिख रहा हूं। बिहार उत्कृष्ट गौरव गाथा से भरा पड़ा है। ज्ञान विज्ञान शिक्षा स्वास्थ्य को विरासत गाथा में समेटे वर्तमान में लालायित है। सरकार के लाख प्रयास के बावजूद शिक्षा स्वास्थ्य व्यवस्था गिरती जा रही है । शिक्षित बेरोजगार की फौज बढ़ती जा रही है रोजगार परक योजना बौना साबित होता जा रहा है। बेरोजगारी की दंस इतनी बढ़ गई है कि अपनी योग्यता को तिलांजलि दे किसी भी पद का पोदान पकड़ ल

मेरा जन्म भूमि झहुरी My birthplace jhahuri

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प्राकृतिक सौंदर्य से घनीभूत खेत खलिहान से भरपूर तीन दिशाओं से जलधारा जीवनदायिनी नदी है बूढ़ी गंडक छोटा सा प्यारा सा नदी किनारे अवस्थित घर द्वार है फुस और मकान मानव जाति का है समिश्रण कोई कहता ब्राह्मण भूमिहार यादव और कुछ मैं कहता सब मानव समुदाय रहते मिलजुल एक समान बांध से सटे सिमटा मेरा गांव पूरे गांव बिजली आई बहुत बाद अब रहता सबके घर बिजली बत्ती आबाद था रोजगार का साधन जुटमिल बंद हुआ पलायन कर रहे तलाश परंपरागत व्यवसाय हो गई आधुनिकता में फीकी रुक गया गृह उद्योग होता आयात कुछ तुक दुम चल रहा बालू और मछली होती है खेती आत्मनिर्भर है परिवार अपने से बचा होता है थोड़ा बहुत व्यापार पुरानी गाछी चारागाह खत्म हो गई बंधा रहता द्वारे गाय भैंस और बकरी उजड़ गया खैड़ झऊआ कठगुल्लर बबूल खर इंकरी विलुप्त हो गई गांव के पक्षी कठफोड़वा सुग्गा बुलबुल बसंती गौरैया कौवा और कुछ नदी में अब नहीं है टेंगरा बघार चोन्हा भुल्ला बाघी कतला भुन्ना सिंघी तीन कटही गरई मांगुर नहीं दिखता भंवरा का छत्ता कहीं-कहीं है घोड़न का निवास हो गई समाप्त बैलगाड़ी टमटम और कटहीगाड़ी नहीं रहा कठजामुन कठबैर फड़सा घुट