बादल
अथाह सागर की अथाह कहानी सुनाता हूं अपनी जवानी सूर्य का प्रकोप सह न पाई जन्म लिया वाष्प उत्सर्जन पहुंचा गगन आसमान उमड़ता घुमड़ता हुआ बादल सफेद काले निराले रूप जमीं की दुनिया पला बढ़ा यौवन देखा आसमां सुहाना खूब उमड़ा घूमड़ा मडराता पाया पवन का सहारा मिला दिशा उपर से नीचे की दुनिया देखा मानव करतूत देखा असली रूप खेत सूखा पेड़ मुरझाया पशुओं की चहलकदमी पक्षियों का कलरव आदमी प्यासा लाचार वेवश आयी दया मया जीवन बचाने लगा बड़सने खेत खलिहान थाह लिया मानव के निर्माण विकाश सबके सब पंगु खोखली बनाई इंसान खिल उठा किसान कलरव करता खड़ रंभाता पशु जानवर अठखेलियां निराला सबको सींचा संवारा दिया नवजीवन प्राण मचल उठी नदी नाले भड़ गई पोखर तालाब चौर गढ़े उबर खाबड़ सब एक समान भयावह लीला प्रकट हुई आया बाढ़ उखड़ गई पेड़ झाड़ी मिट गई नामोनिशान विखड़ गई झुंड सिमट गई जिंदगी लगा त्राहिमाम करने जीवन जीवन देने वाला लेने लगा जीवन ऊब गया भूल गया कोशने लगा पल दो पल साथ हाय तौबा मच गई हो रही खींचाई अब तो बस करों ठहरो कुछ काल आगे बढ़ता गया घटता गया यौवन तब्दील हुआ देखा खुद का बुढ़ापा रहा न